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सफर - मौत से मौत तक….(ep-9)

अभी तक आपने देखा गौरी बेसब्री से नंदू का इंतजार कर रही थी, फ़िल्म देखने का सपना तो टूट चुका था लेकिन नंदू अभी घर नही पहुँचा था।।   अब जब समय बढ़ने लगा तो गौरी रोटी पकाने लगी, उसकी आंखे नम थी, और जब आसपास कोई नही होता तो एक दो आंसू भी गिर जाते थे। अगर उसे बताया नही होता कि जल्दी आकर सिनेमा चलेंगे तो शायद इतना बुरा नही लगता, लेकिन एक उम्मीद लगाए बैठी थी गौरी।।
  गौरी अभी रसोइए में खाना पका रही थी, की बाहर से माँजी की आवाज सुनाई पड़ी
"क्यो रे नंदू….तू तो जल्दी आने वाला था ना आज….और आज ही तू देर से आया, हम सबको चिंता हो गयी थी तेरी"

"अरे कुछ नही, बस काम आ पड़ा था कोई इसलिए देरी हो गई……" नंदू ने जवाब दिया

गौरी जान चुकी थी नंदू आ चुका है, मन मे खुशी थी तो एक नाराजगी भी, उसने भी ठान रखी थी चाहे जो भी हो जाये, आज वो उनसे बात नही करेगी, फ़िल्म नही भी दिखानी थी तो कम से कम जल्दी तो आ जाते।

कौशल्या ने नंदू से कहा- "चल तू हाथ मुंह धो कर थोड़ा आराम कर ले, फिर खाना ले आती हूँ"

"बाबूजी ने खाया खाना?" नंदू ने सवाल किया, क्योकि कुछ दिनों से उनकी तबियत ठीक नही थी, इसलिए वो कभी खाते, कभी कम खाते तो कभी भूख नही है बोलकर खाते ही नही थे।

"अभी कहाँ, उन्हें भी तेरी फिक्र हो रही थी, बोल रहे थे नंदू आएगा तो साथ खाएंगे"  कौशल्या बोली।

नंदू बहुत दुखी था, लेकिन जताना नही चाहता था, और गौरी से बात करने से भी डर लग रही थी, नंदू  ने बाल्टी का पानी और जग लिया और आंगन में बैठकर पैरों को मलने लगा।

कौशल्या अंदर रसोई की तरफ गयी।
"ध्यान कहाँ है तुम्हारा, रोटी जला दी…." कौशल्या ने कहा, नंदू ने भी सुनी आवाज, अब उसे लगा गौरी की आवाज भी सुनने को मिलेगी, लेकिन गौरी ने शायद इशारों में निपटा दी होगी, कोई आवाज नही आई।

"चलो कोई बात नही, किसी को परोस मत देना, सुबह कुत्ते को खिला दूँगी, जो रोज आता है," कौशल्या ने कहा।

नंदू अपनी एड़ियां, पत्थर में रगड़ के साफ कर रहा था, हालांकि शादी से पहले ऐसा नही करता था, लेकिन एक दो दिन पहले गौरी ने उन्हें ये तरकीप बताई थी तो तब से वो ऐसे एड़ियां भी चमका लेता था,
अच्छे से मुंह हाथ धोकर नंदू अंदर आया और तौलिए से मुंह पोछते पोछते ही दबे पांव रसोई की तरफ गया,उसे लगा गौरी अकेली होगी तो उससे माफी मांग लूँगा,लेकिन जब रसोई पहुँचा तो माँ भी शब्जी को घोट रही थी, ताकि थोड़ा गाढ़ी हो जाये,

"मैं ले आऊंगी खानां, तू क्यो आ गया यहां, " कौशल्या ने नंदू से कहा।

" मैं पानी पीने आया था" नंदू ने कहा।

कौशल्या ने शब्जी छोड़कर एक गिलास पानी मटके से निकाला और नंदू को थमाया। नंदू भी पानी पीते हुए अंदर चला गया।

नंदू वापस बाहर कमरे में आकर सोचने लगा कि वो किचन में गया, पानी लेकर आया, गौरी ने एक बार भी उसकी तरफ नही देखा,जरुर बहुत नाराज है वो, चलो सोने तो मेरे साथ ही आएगी तब मना लूँगा, फिलहाल बाबूजी से उनकी तबियत पूछ लेता हूँ।

नंदू अपने बाबूजी के पास आया, अभी चिंतामणि चारपाई के खूंटे के पास दीवार के सहारे पीठ को टिकाकर जमीन में बैठा था,

"क्या हुआ बाबूजी, बुखार वगेरा तो नही कुछ," नंदू ने सवाल किया।

"नही कुछ भी नही है, बस भुख नही लगती…." चिंतामणि ने जवाब देते हुए कहा।

"क्यो नही लगती, जब खाओगे तो लगेगी ना, अब आप कोशिश ही नही करोगे तो कैसे खाया जाएगा" नंदू ने कहा।

"कब तक लगेगी बेटा भूख….अब और कितना दाना पानी लिखा होगा किस्मत में…" चिंतामणि ने चिंताजनक बात कही।

"नही बाबूजी! ऐसा क्यो बोल रहे हो, थोड़ा घूमोगे फिरोगे तो खुल जाएगी भूख, कल मैं उस बंगाली डॉक्टर से दवाई लाऊँगा, पिछली बार भी उसी से ठीक हुआ था ना" नंदू ने कहा।

"नही बेटा! वो सरकारी अस्पताल से लाया हूँ मैं गोली, भूख खुलने के लिए, बंगाली डॉक्टर तो लुटता बहुत है….बहुत महंगी दवाई देता है"  चिंतामणि ने कहा।

"महंगी सस्ती क्यो सोचते हो आप….मैं जो कमा रहा हूँ किसके लिए कमा रहा हूँ….और आप ही बोलिये उस फ्री फण्ड की दवाई का क्या लाभ जब बीमारी कम ना हो उससे" नंदू ने कहा।

"हो तो रहा है असर….कल बिल्कुल नही थी भूख, आज मन कर रहा है एक-आधी रोटी तो खा ही लूँगा" चिंतामणि ने कहा

"अगर फ़रक लग रहा तो ठीक है, नही तो परसो चलना मेरे साथ, उसी हॉस्पिटल में जा आएंगे एक बार, जहाँ से मधुमेह की जांच कराई थी" नंदू ने कहा।

इतने में कौशल्या दो थाली में खाना ले आयी, एक थाली में एक साथ छह रोटियां थी तो एक मे दो रोटियां,
दो रोटियों वाली थाली चिंतामणि की तरफ बढ़ाया और दूसरी ज्यादा रोटी वाली थाली नंदू के सामने रख दी,

ये सब नजारा देखकर चारपाई में बैठे नंदू अंकल ने यमराज से कहा-
"दो थालियों में फर्क देख रहे हो तुम……"

यमराज ने अपना  सिर हां में हिलाते हुए कहा - "हाँ, एक मे कम रोटी है एक मे ज्यादा….बाबूजी वाली  कटोरी में सिर्फ शब्जी का पानी पानी है,टुकड़े नही डाले है, क्योकि आलू मटर की सब्जी है और आलू मधुमेह के लिए नुकसानदायक है…. जबकि आपकी वाली कटोरी थोड़ी बड़ी है उसमे आलू  मटर दोनो है, और आपकी रोटियों में घी भी लगा है, जबकि बाबूजी वाली सुखी रोटी है,"यमराज बोला

"एक ही बताते काफी था……इतने सारे बताकर कोई प्रतियोगिता नही जितने वाले हो तुम" नंदू बोला।

"तो पूछा क्यो आपने…" यमराज बोला।

"इसलिए पूछा क्योकि इतना ही अंतर दो थालियों में बचपन मे भी हुआ करता था, तब में छोटा था, और बाबूजी तब ठीक ठाक थे, मैं सिर्फ एक या दो रोटी खाता था और बाबूजी बहुत सारी….तब मैं उनसे सोचता था….बाबूजी इतने सारे कैसे खा लेते हो?…. और मैं दो ही क्यो खा पाता हूँ?, अब समझ आया कि ज्यादा मेहनत करने से ज्यादा भूख लगती है।
लेकिन उल्टा चक्र देखकर दुख बहुत हुआ, मुझे तब एहसास नही था कि सबके जीवन मे बचपन बुढ़ापे के रूप में लौटकर आता है, ज्यादा बोलना, बात बात में गुस्सा आना, भूख और नींद का खो जाना और बच्चो जैसी हरकते करना जवानी के ढलने के बाद एक बार फिर दस्तक देता है, लेकिन उसे बचपन की तरह जीने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए और संस्कारी बच्चे…… चिंतामणि के पास संस्कारी नंदू है तो वो बीमार है, और मैं स्वस्थ था तो……" कहते कहते नन्दू  रुक गया।

"तो….तो क्या….बोलिये ना  अंकल" यमराज ने कहा।

"चल चल….ज्यादा सयाना मत बन, बात बात पर इमोशनल करके जो जवाब हासिल करने की कोशिश में लगे हो ना….मैं नही होने दूँगा कामयाब" नंदू अंकल ने कहा।

"आप भी ना बात बात में गलत समझ लेते हो मुझे…. मेरा खुद का इंटरेस्ट बढ़ने लगा है तुम्हारी इस कहानी में……अब तो बस ये देखना है कि आप गौरी को मनाते कैसे हो"

नंदू और उसके बाबूजी ने खाना खाया और नंदू ने जाकर दोनो के बर्तन बाहर आंगन में रख दिये, जहां जूठे बर्तन धोए जाते थे। और हाथ धोकर अंदर आने लगा तो उसे रसोई से माँ की आवाज सुनाई दी।

"तुम्हे क्यो भूख नही है….नंदू को पता लगेगा कि तुम खाना खाने से इनकार कर रही हो तो बहुत गुस्सा करेगा, चुपचाप खा ले खाना, शब्जी कम लग रही तो उस कटोरी से निकाल लेना, नंदू सुबह जल्दी जाएगा तो रोटी के साथ खा लेगा करके बचाया है, सारा मत लेना, बचा देना थोड़ी"  कौशल्या  ने धीरे से ही गौरी को समझाया, लेकिन नंन्दू खिड़की के छेद से गौरी को देखने आया था, इसलिए उसने ये बात सुन ली, गौरी का मुंह लटका हुआ था। नंदू ने देखा गौरी ने माँ के कहने पर खाना खाना शुरू कर दिया है तो नंदू अपने रिक्शे पर ताला लगाकर सीधे शयन कक्ष की तरफ चले गया।

तभी माँ ने आवाज देकर नंदू से कहा- "नंदू सोना बाद में पहले अपने बाबूजी को दवाई दे दो, हमे पता नही चलता कौन सा कब देना है।"

नंदू ने उठाकर शाम की दवाई बाबूजी को दी और उनका बिस्तर भी लगा दिया।

रसोई से आंगन जाने के लिए इसी कमरे से गुजरना पड़ता था, नंदू अभी तकिया और चादर सेट कर रहा था, जमीन और ही बिस्तर लगाया था तो उसी बीच गौरी भी रसोई के झूठे बर्तन आंगन की तरफ ले गयी, लेकिन अभी भी नंन्दू से कोई बात नही की उसने। उसके पीछे पीछे कौशल्या भी चली गयी, क्योकि बहु को अकेले डर लगता था।
  गौरी बाहर बर्तन धोने लगी और नंदू सोने के लिए चले गया, और बिस्तर में लेटकर इंतजार करने लगा गौरी का, उसे इंतजार था जल्दी से गौरी बर्तन धोकर कमरे में आ जाये।

थोड़ी देर इंतजार के बाद गौरी कमरे में आई, और बगल में चुपचाप लेट गई, वो कोई शिकायत भी नही कर रही थी और नंदू बिना शिकायत के सफाई भी नही दे पा रहा था, नंदू को क्या कहूं हो गयी थी।

अब नंदू ने हीम्मत करके उसके कान के पास फुसफुसाया- "मुझे माफ़ कर दो, आपको सिनेमाहॉल ले जाने की बात बोली और आने में देर हो गयी"

गौरी ने बिना कोई जवाब दिए नंदू की तरफ पीठ मोड़ दी

"ये भी नही पूछोगे की देर से क्यो आये" नंदू ने कहा।

गौरी सिसकी ले रही थी,

"तुम रो रही हो?……, यार माफी मांग तो रहा हूँ ना…., मैन बहुत कोशिश की थी जल्दी आने की, लेकिन पूरी तरह से मजबूरी में फंसा हुआ था… क्या करता" नंदू ने कहा।

इस बात पर गौरी सिसकते हुए बोली- "तो सुबह से कहना जरूरी था, बोलते ही नही….मैं माँजी को भी बोल दी थी कि हम आज सिनेमा जा रहे, और तैयार भी हो गयी थी, पागलो की तरह सारा काम दिन से ही करने लगी थी"

"लेकिन मेरे साथ एक दुर्घटना हो गयी थी, दो लोग मुझे स्टेशन तक ले गए,और बिना भाड़ा दिए अभी आते है दस मिनट में बोलकर खिसक लिए….उनका इंतजार करता रहा, लेकिन जब वो नही आये। और कमाई भी कुछ हुई नही थी, आते आते एक सवारी और मिली थी, तब जाकर चार रुपये कमाए आज" नंदू बोला।

"लेकिन जब जल्दी आने की उम्मीद नही थी तो सिनेमा जाने की उम्मीद जगानी जरूरी थी क्या" गौरी बोली।

नंदू ने गौरी को खींचकर अपने करीब किया और उसके चेहरे को अपनी तरफ घुमाते हुए कहा- "जो होना था हो गया, भूल जाओ ना"

" आपके साथ जो हुआ गलत हुआ, भगवान वो ठग जो भी थे रास्ते मे ही गिर मरे, घर पहुंचे ही नही वो" गौरी ने उन बदमाशो को गाली देते हुए कहा।

"ऐसा क्यो बोल रही हो….कोई कितना भी गलत करे , हमारा काम है सबका भला करना, सबके लिए भला सोचना, उनकी कर्मो की सजा तो भगवान उन्हें दे ही देगा" नंदू ने कहा।

नंदू के दोनो हाथ गौरी के दोनो गालों को पकडे हुए थे, और नंदू उसे प्यार से समझा रहा था- "देखो, काम मे जल्दी आना, देर से आना, कुछ कहकर भूल जाना, सब चलता रहता है, और परिवार में नाराजगी से रिश्तों में दरार आती है, जब कभी कोई नाराजगी हो तो चुप मत रहना , मुझसे झगड़ना, मुझे मेरी गलती बताना और चार बाते सूनाना , जैसे मेरे माँ बाबूजी हमेशा झगड़ते रहते है, लेकिन आज तक एक साथ है क्योकि झगड़ा लोगो को दूर नही करता, दिल मे पैदा हुई नफ़रत और नाराजगी में चुप रहने से लोग दूर होते है, जैसे आप गलत होंगे और मुझे गुस्सा आएगा तो मैं डाटूंगा, ठीक वैसे ही आपको भी मुझे डाँटने का पूरा अधिकार होगा"

"वो सब तो ठीक है, लेकिन मेरा मन बहुत है सिनेमा देखने का…." गौरी बोली।

"चलेंगे ना, जरूर चलेंगे, हर हफ्ते लगती है फ़िल्म….किसी दिन चलेंगे" नंदू बोला।

"लेकिन इस बार सुबह ये मत कहना कि शाम को जल्दी आऊंगा और सिनेमा चलेंगे" गौरी बोली।

"क्यो? " नंदू ने सवाल किया।

"वो क्या है ना मेरी खुशियों को मेरी ही नजर लग जाती है" गौरी ने कहा।

"तो क्या बताऊंगा, कैसे बताऊंगा की चलना है" नंदू ने पूछा? 
गौरी मुस्कराते हुए बोली- "सुबह ये मत कहना कि शाम को जल्दी आऊंगा और सिनेमा चलेंगे, बल्कि शाम को जल्दी आकर ये बोलना की मैं जल्दी आ गया सिनेमा जाने के लिए"

गौरी को मुस्कराता देखकर नंदू भी मुस्करा उठा और गौरी को थोड़ा और पास खींचते हुए बोला- "अब तो कोई नाराजगी नही है, इतनी दूर क्यो हो"

गौरी कुछ बोलती की नंदू अंकल ने यमराज को डांटते हुए कहा- "शर्म नही आती, ऐसे किसी के बेडरूम में क्या कर रहे हो….चलो बाहर जाओ"

"मैं तो आपके साथ ही रहूँगा, अगर आप बुढ़ापे में बेशर्मी करके इधर रुके हो तो मैं क्यो नही" यमराज बोला।

"ये मेरा बेडरूम है, और गौरी मेरी पत्नी और मैं उसका पति" नंदू ने कहा।

"गौरी आपकी नही उस नंदू की पत्नी जो उधर सोया है,….अब चलो बाहर" कहते हुए यमराज नंदू को जबरदस्ती खींचते हुए बाहर ले गया।

कहानी जारी है


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3 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:22 PM

Intresting

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Fiza Tanvi

09-Sep-2021 07:51 AM

Kis tarah se zayeef apni taqleef ko chupate.. Apne bahut acche se bayan kiya he. Nice story

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🤫

08-Sep-2021 10:16 PM

नंदू और यमराज...जी..😅😅😅 बढ़िया कहानी, मजा आ गया पढ़ कर

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